देश के बड़े राज्यों में दो ऐसे रहे जहां भाजपा को एक भी सीट हासिल नहीं हुई, लेकिन अपने दम पर लड़कर पार्टी ने इन राज्यों में अपनी स्थिति बेहद मजबूत कर ली है। ये दोनों राज्य हैं पंजाब और तमिलनाडु। खास बात यह है कि इन दोनों ही राज्यों में अबतक भाजपा अन्य सहयोगियों के जूनियर की भूमिका में रहती थी। तमिलनाडु में जहां उसने अब तक अन्नाद्रमुक या द्रमुक के गठबंधन में चुनाव लड़कर कुछ सीटें जीतीं वहीं पंजाब में लंबे समय से उसका अकाली दल के साथ गठबंधन रहा और वह यहां भी हमेशा जूनियर पार्टनर की भूमिका में रही। इस बार के लोकसभा चुनाव में पार्टी अपने दम पर उतरी और वोट शेयर के मामले में जोरदार प्रदर्शन किया। पंजाब में उसे 18.56 फीसदी वोट मिले। खास बात यह है कि उसका वोट शेयर उसके पूर्व साथी अकाली दल से करीब पांच फीसदी अधिक रहा, जिसे इस बार सिर्फ 13.42 फीसदी वोट मिले।
अकाली दल को एक सीट मिली जबकि भाजपा यहां खाली हाथ रही। हालांकि तीन सीटों पर पार्टी के प्रत्याशी दूसरे नंबर पर रहे। यहां सबसे अधिक 26.30 फीसदी वोट कांग्रेस को मिले जिसने 7 सीटें जीत लीं जबकि उससे सिर्फ 0.28 फीसदी कम यानी 26.02 फीसदी वोट पाने वाली आम आदमी पार्टी को सिर्फ तीन सीटों से संतोष करना पड़ा। बात तमिलनाडु की करें तो यहां भाजपा इस बार अपना गठबंधन बनाकर चुनाव में उतरी थी। उसे यहां 11.24 फीसदी वोट मिले। लेकिन, इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि पार्टी राज्य की नौ सीटों पर दूसरे स्थान पर रही। अपने दम पर चुनाव मैदान में उतरी पार्टी के लिए यह शानदार प्रदर्शन है और ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था। जाहिर है, भविष्य में पार्टी को अब स्थानीय दल गंभीरता से लेंगे और यदि अन्नाद्रमुक के साथ उसका गठबंधन फिर से होता है, तो बातचीत अब बराबरी के स्तर पर होगी। वैसे चुनावी रणनीतिकारों ने इस बार अन्नाद्रमुक को खारिज कर दिया था, लेकिन चुनाव नतीजों ने साबित किया है कि पार्टी अब भी राज्य में प्रासंगिक बनी हुई है।
एनडीए को पिछली बार जितने ही वोट मगर घट गईं 7 सीटें : कर्नाटक में एनडीए का वोट शेयर तो पिछले चुनाव जितना ही मिला लेकिन हाथ से 7 सीटें निकल गईं। पिछले चुनाव में भाजपा को अकेले 51.38 फीसदी वोट और 25 सीटें मिली थी। वहीं जदएस और कांग्रेस मिलकर लड़े और दोनों को संयुक्त रूप से 41.45 फीसदी वोट मिले। इसमें से कांग्रेस को 31.88 जबकि जदएस को 9.67 फीसदी वोट मिले। दोनों को मिलकर दो सीटें आईं। इस बार भाजपा और जदएस मिलकर लड़े और उन्हें कुल 51.66 फीसदी वोट मिले जिसमें भाजपा को 46.06 जबकि जदएस को 5.6 फीसदी वोट मिले। भाजपा को 17 और जदएस को दो सीटें मिलीं।
ओडिशा में भाजपा के वोटों में सात फीसदी का आया उछाल : लोकसभा में भाजपा को 20 सीटें देकर गदगद करने वाले ओडिशा में पार्टी के वोट शेयर में जोरदार उछाल आया है। पिछली बार के 38.40% के मुकाबले उसे इसबार 45.34% वोट मिले हैं। सात फीसदी की इस उछाल के कारण पार्टी को 12 सीटों का फायदा हुआ। दूसरी ओर पिछली बार 12 सीटें जीतने वाली और इस बार शून्य पर सिमटने वाली बीजद को करीब 5.27 फीसदी का नुकसान हुआ है। उसे इस बार 37.53 फीसदी वोट मिले। कांग्रेस का हाल कमोबेश पिछली बार जैसा ही रहा। 2019 में उसे 13.4 फीसदी, जबकि इस बार 12.52 फीसदी वोट मिले। सीटों की संख्या दोनों बार एक ही रही।
राजस्थान में 2009 जैसा रहा वोट शेयर का पैटर्न : भाजपा को झटका देने वाले राज्यों में शामिल राजस्थान में वोट शेयर का पैटर्न 2009 के चुनाव जैसा रहा। 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को करीब 47 प्रतिशत वोट मिले थे और उसने 20 सीटें जीत लीं। इस बार भाजपा 49 प्रतिशत वोट लेकर भी 14 सीटों पर ही रुक गई। उस चुनाव में भाजपा को 36.57 प्रतिशत वोट मिले, जो 2024 में कांग्रेस के वोट शेयर के आसपास का आंकड़ा है। लेकिन इस वोट शेयर पर 2024 में कांग्रेस को 8 सीटें मिली हैं, वहीं 2009 में इसी आंकड़े पर भाजपा को महज 4 सीटें ही हाथ लग पाई थीं पार्टी ने रालोपा के साथ एक सीट के गठबंधन में सभी 25 सीटों पर कब्जा जमा लिया था। इस बार पार्टी मतदाताओं का अपेक्षित समर्थन पाने में सफल नहीं हुई। ऐसे में भाजपा को 49.24 प्रतिशत वोट और 14 सीटों के साथ ही सब्र करना पड़ा है। इधर, कांग्रेस की बात करें तो पार्टी का वोट शेयर बीते चुनाव में 34.58 प्रतिशत रहा था, लेकिन तब वह पूरे राज्य में एक भी सीट नहीं जीत पाई। इस बार भी कांग्रेस की झोली में 37.91 प्रतिशत वोट आए।