छोटी नदियों के संगम से बनी गंगा 2,550 किलोमीटर, ब्रह्मपुत्र और सिंधु भारत में क्रमशः 916 और 1,114 किलोमीटर लंबी हैं। लगभग सभी बड़ी नदियों के उद्गम ग्लेशियरों से हैं। इनके बहाव क्षेत्र में जंगल, तराई, मैदान और बीहड़ क्षेत्रों से छोटी-छोटी नदियां बड़ी नदियों में मिल रही हैं। भारत की सबसे छोटी नदी अरवरी है, जो अरावली पर्वतमाला से निकलकर राजस्थान के अलवर जिले में बहती है। यमुना सबसे बड़ी सहायक नदी है। यमुना में भी टौंस, हिंडन, चंबल, बेतवा आदि मिलती हैं। छोटी नदियां बड़ी नदियों के प्रवाह बढ़ाने के साथ उन्हें भूजल पुनर्भरण में सक्षम बनाती हैं। मिट्टी की नमी बनाए रखती और जैव विविधता में सुधार करती हैं। सूखे और बाढ़ का सामना करने में मदद करती हैं, लेकिन सूख रही छोटी नदियों का कायाकल्प समुदाय के बिना संभव नहीं है। इन सहायक और छोटी नदियों में निरंतर घटती जल राशि चिंता का विषय है।
ग्लेशियरों के सूखने से हिमपोषित नदियां भी सूख रही हैं। भीषण गर्मी से बुंदेलखंड की कई नदियां सूख गई हैं। गंगा-यमुना की छोटी नदियां और जल स्रोत सूख गए हैं। हर वर्ष हिमालय से लेकर मैदानों तक भारी जल सैलाब से अपार जन-धन की हानि हो रही है। बारिश के पानी को रोकने की पारंपरिक शैली को आधुनिक विकास ने रौंद डाला है, जहां तालाब, जोहड़ जैसी जल संरचनाएं होती थीं। अब उन स्थानों पर बहुमंजिला इमारतें बन गई हैं। खनन, सीमेंटेड संरचनाओं ने पूरे जल क्षेत्र की जलवायु पर विपरीत असर डाला है। भूजल बहुत नीचे चला गया है। इन चुनौतियों के बावजूद आज भी भारत के गांवों में लोग अपने पारंपरिक प्रबंधन से जल की व्यवस्था करते हैं, जिससे विवेकपूर्ण जल उपयोग को बढ़ावा मिलता है।
सक्रिय समाजसेवियों, पर्यावरणविदों और पानीदार समाज ने मिलकर ऐसे उदाहरण भी प्रस्तुत किए हैं कि सूखी छोटी नदियां फिर से बहने लगी हैं। अलवर में तरुण भारत संघ ने सूखी नदियों को जिंदा कर दिया है। लोग वहां नदियों के पुनर्जीवन के सामाजिक और पर्यावरणीय तरीके सीख रहे हैं। बुंदेलखंड में परमार्थ समाजसेवी संस्थान ने छोटी नदियों के पुनर्जीवन के लिए जोरदार अभियान चला रखा है। उन्होंने अब तक विलुप्त होती बछेड़ी, कनेरा, बारगी, खूडर, घुरारी नदी के पुनर्जीवन के लिए स्थानीय राज-समाज के साथ मिलकर महत्वपूर्ण प्रयास किए हैं।
मध्य प्रदेश के खजुराहो में हाल ही में जल जन जोड़ो अभियान और परमार्थ समाजसेवी संस्थान द्वारा आयोजित एक संवाद में 15 राज्यों से 50 नदी प्रतिनिधियों ने निर्णय लिया कि 51 नदियों के पुनर्जीवन हेतु यात्रा का आयोजन होगा। जलपुरुष राजेंद्र सिंह की अगुवाई में देश भर से आए जल विशेषज्ञों ने मांग की है कि केंद्र सरकार नदियों के लिए एक स्पष्ट नदी नीति बनाए। नदियों के लिए काम करने वाले लोग मानते हैं कि छोटी नदियों का समुदाय की खाद्य सुरक्षा, उनका सम्मानजनक जीवन और उनके आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका है। इसके साथ ही बड़ी नदियों के प्रवाह को बढ़ाना, भूजल का पुनर्भरण, जमीन की उपजाऊ क्षमता को बढ़ाने में भी ये मददगार होती हैं। जलवायु परिवर्तन का सीधा संबंध छोटी नदियों से है। यदि हम छोटी नदियों को जीवित कर लेंगे, तो जलवायु परिवर्तन का खतरा कम हो जाएगा। इस अभियान के राष्ट्रीय संयोजक डॉ. संजय सिंह ने कहा कि नदियों को पुनर्जीवित करने के लिए निकाली जाने वाली यात्राओं के पहले यह जरूरी है कि संबंधित नदी के बारे में सारे आंकड़े एकत्रित करने के बाद समुदाय के साथ मिलकर संवाद किया जाएगा।
प्रो. विभूति राय कहते हैं कि यदि पारंपरिक जल सुरक्षा के उपायों पर ध्यान नहीं दिया गया, तो मानव जीवन पर संकट बढ़ जाएगा। अगले 20 वर्षों में नदियां सूख जाएंगी। यदि छोटी नदियों को पुनर्जीवित करना है, तो हर क्षेत्र की जलवायु के अनुसार अलग-अलग प्लान की आवश्यकता है। शैक्षणिक पाठ्यक्रम में नदी ज्ञानतंत्र को शामिल किया जाए। डब्ल्यूएचएच भारत के प्रमुख राकेश कटल कहते हैं कि यह नदियों को बचाने की आपातकालीन स्थिति है। इसलिए देश भर में नदियों के पुनर्जीवन के लिए चिंतित समाज और पर्यावरणविद आगे आकर एक-एक नदी को पुनर्जीवित करने लिए कदम बढ़ा रहे हैं

