बीते 25 मई को गुजरात के राजकोट में गेमिंग जोन में आग लगने से बच्चों समेत 32 लोगों की मौत हो गई। राज्य सरकार ने एसआईटी गठित कर जांच शुरू कर दी है। राज्य के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने मृतकों के परिवार को चार लाख रुपये और घायलों को 50,000 रुपये की सहायता राशि देने की घोषणा की है। 25 मई की रात ही दिल्ली में आग लगने की दो अलग-अलग घटनाएं हुईं। विवेक विहार में बच्चों के अस्पताल में आग लगने से सात नवजात शिशुओं की मौत हो गई और पांच अन्य घायल हो गए। इसके अलावा, कृष्णानगर में एक इमारत में करीब दो बजे सुबह आग लगी, जिसमें तीन लोगों की जान चली गई और तीन अन्य लोग घायल हो गए। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अपनी संवेदना व्यक्त की और आश्वासन दिया कि घटनाओं के कारणों की जांच की जा रही है, ताकि जिम्मेदार लोगों को जवाबदेह ठहराया जा सके। घनी आबादी और भीड़भाड़ वाले इलाकों में तंग बुनियादी ढांचे के कारण भारत के शहरी क्षेत्र आग लगने जैसी घटनाओं के लिए विशेष रूप से असुरक्षित हैं। जैसे कि वर्ष 2018 में मुंबई के ईएसआईसी कामगार अस्पताल में आग लगी और 2019 में सूरत कोचिंग सेंटर में आग लगने से 22 छात्रों की मौत हो गई।
ये घटनाएं बताती हैं कि अतीत की त्रासदियों से पूरी तरह सबक नहीं लिया गया। अतीत में हुए सबसे दुखद उपहार सिनेमा अग्निकांड और भोपाल गैस त्रासदी ने प्रणालीगत सुधारों की जरूरत और उपेक्षा के गंभीर परिणामों को उजागर किया। औद्योगिक सुरक्षा चूक की कई घटनाएं हुई हैं, जो मजबूत शासन और सख्त सुरक्षा नियमों की तत्काल जरूरत को रेखांकित करती हैं।
उपहार सिनेमा अग्निकांड एक ऐसी त्रासदी थी, जिसे रोका जा सकता था। 13 जून, 1997 को जब दिल्ली के उपहार सिनेमा में एक लोकप्रिय फिल्म प्रदर्शित हो रही थी, उसी समय खराब ट्रांसफार्मर के कारण आग लग गई, जिसमें 59 लोगों की मौत हो गई और 100 से अधिक लोग घायल हो गए। ज्यादातर पीड़ित दम घुटने के कारण मरे, क्योंकि वे बालकनी वाले इलाके में निकास द्वार के बंद या बाधित होने के कारण फंस गए थे। अग्नि सुरक्षा से संबंधित उचित उपायों और आपातकालीन तैयारियों की कमी के कारण यह त्रासदी और भी गंभीर हो गई।
इस अग्निकांड की जांच में घोर लापरवाही और सुरक्षा उपायों का उल्लंघन पाया गया, जैसे कि बचकर भागने के रास्ते बंद थे और अग्निशमन उपकरण उचित रखरखाव के अभाव में खराब थे। उपहार सिनेमा अग्निकांड भवन संहिता (बिल्डिंग कोड) एवं अग्नि सुरक्षा उपायों के सख्त क्रियान्वयन की व्यापक आवश्यकता की याद दिलाता है। यह नियमों के अनुपालन में स्थानीय अधिकारियों की विफलता को भी उजागर करता है, जो शासन के व्यापक मुद्दों को रेखांकित करता है, जिससे केंद्र और राज्य, दोनों स्तरों पर निपटने की जरूरत है। अग्निकांड से अलग प्रणालीगत विफलता का एक और उदाहरण है-भोपाल गैस त्रासदी। 1984 की भोपाल गैस त्रासदी औद्योगिक सुरक्षा की कमी का एक प्रमुख उदाहरण है, जिसके कारण बड़े पैमाने पर जनहानि हुई। भोपाल में यूनियन कार्बाइड कीटनाशक संयंत्र में मिथाइल आइसोसाइनेट गैस का रिसाव हुआ, जिसके कारण हजारों लोगों की तत्काल मृत्यु हो गई और पांच लाख से ज्यादा लोगों को लंबे समय तक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से जूझना पड़ा। यह त्रासदी खराब रखरखाव, अपर्याप्त सुरक्षा प्रोटोकॉल, आपातकालीन स्थितियों में तैयारी की कमी का नतीजा थी। इसके बाद लंबी कानूनी लड़ाइयां चलीं और पीड़ितों को देर से न्याय मिला। इस त्रासदी ने औद्योगिक संयंत्रों के संचालन में सुरक्षा मानकों को लागू करने और नियामक निगरानी के महत्व को उजागर किया। इसने लापरवाही के लिए कंपनियों को जिम्मेदार ठहराने और ऐसी आपदाओं को रोकने के लिए निवारक उपाय सुनिश्चित करने के लिए एक मजबूत कानूनी ढांचे की आवश्यकता को भी प्रदर्शित किया।