नीमच। (सुरेश सन्नाटा)
जिले की जावद तहसील में स्थित सुखदेव मुनि की तपोस्थली सुखानंद धाम एक ऐसा स्थल है जहां की प्राकृतिक छटा हो या या वहां प्रवाहित होने वाला मनोहरी जलप्रपात लोगों की इस मंदिर से जुड़ी आस्था को परवान चढ़ाते हुए उन्हें आकर्षित करता है। विशेष कर श्रावण मास में इस धाम पर भक्तों का मेला लगा रहता है। कावड़ यात्री भी दूर-दूर से यहां पहुंचकर भोले बाबा का अभिषेक करते हैं। अगर यह कहा जाए कि यह स्थल धार्मिक धाम होने के अलावा एक अच्छा पर्यटक स्थल भी है तो गलत नहीं होगा। यहां पर वर्षों से बंदर बाटी का आयोजन भी होता है क्योंकि इस स्थल पर असंख्य बंदरों का आश्रय होकर वे विचरते हैं। ऐसे में भक्तों की दानशीलता उनके लिए प्रतिदिन बाटी बनाकर उन्हें खिलाने की स्थाई व्यवस्था से जुड़ी है। ये बंदर यहां आने वाले भक्तों के लिए भी आकर्षक रहते हैं। परंतु इन दिनों यहां धीमी गति से चल रहे निर्माण व अन्य कार्यों की वजह से मंदिर का पहुंच मार्ग इस तरह क्षतिग्रस्त है कि यहां पहुंचने वाले यात्री कीचड़ में होकर अपने गिरने पड़ने की जोखिम उठाकर यहां पहुंच रहे हैं। यह धाम जंगल की वादी ने स्थित होने के कारण यहां जीव जंतुओं का खतरा भी बना रहता है ऐसे में यह खड्डे और दलदल कभी भी श्रद्धालुओं के लिए दुखदाई साबित हो सकता है। जिस पर संज्ञान लेना संबंधित प्रशासन हो या जनप्रतिनिधि के लिए नितांत आवश्यक है। ताकि यहां पहुंचने वाले भक्तों को किसी अनहोनी घटना से रूबरू नहीं होना पड़े। उल्लेखनीय है कि भादवा व श्रावण मास में यहां हजारों भक्तों की विशेष रूप से आवाजाही रहती है जो भोले बाबा की पूजा अर्चना से अपने घर परिवार की कुशलता की कामना के साथ यहां की प्राकृतिक छटा को निहार कर प्रफुल्लित होते हैं। यानी यानी इस स्थल की दशा को सुधारने की दिशा में प्रभावी पहल के साथ इसका कायाकल्प करना प्रशासन व जनप्रतिनिधियों की प्राथमिकता में शुमार होना जरूरी है।