अहंकार के त्याग बिना आत्म कल्याण का मार्ग नहीं मिलता,…

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महावीर जिनालय ‌ विकास नगर श्री संघ में साध्वी सोम्यरेखा श्रीजी साध्वी ‌वृंद का चातुर्मासिक धर्म सभा प्रवाहित,
नीमच,22जुलाई (केबीसी न्यूज़) रावण के पास सोने की लंका, सुख वैभव धन, संपत्ति सब कुछ था लेकिन फिर भी सब कुछ यहीं रह गया।फिर भी मनुष्य धन के पीछे अंधा होकर दौड़ रहा है। धन संपत्ति सब नष्ट होने वाली है।अहंकार के त्याग बिना आत्म कल्याण का मार्ग नहीं मिलता है।
यह बात साध्वी : सोम्यरेखा श्री जी महाराज साहब की सु शिष्या साध्वी सुचिता श्रीजी मसा ने कही।वे जैन श्वेतांबर महावीर जिनालय ट्रस्ट विकास नगर श्री संघ के तत्वाधान में श्री महावीर जिनालय विकास नगर‌ आराधना भवन नीमच में आयोजित धर्म सभा में बोल रही थी। उन्होंने कहा कि‌ किसी भी विपरीत परिस्थितियों हो आवेश और क्रोध में नहीं आना चाहिए। एक क्षण का क्रोध हमारे जीवन भर के परिश्रम को नष्ट कर सकता है। रावण ने लक्ष्मण को अपने ज्ञान की शिक्षा में बताया था कि क्रोध नहीं करने की सलाह दी थी और जब कोई खराब काम करे तो अच्छे व्यक्ति की सलाह लेने का सुझाव दिया था। शुभ कार्य में देरी नहीं करना चाहिए। परिवार में सदैव प्रेम सद् व्यवहार के साथ रहना चाहिए। तपस्या से अशुभ कर्म नष्ट होते हैं। उपवास की तपस्या करने से पाप कर्म नष्ट हो जाते हैं। तपस्या करना मानव का कर्तव्य है स्थिति बिगड़ने पर संभालना परमात्मा का कर्तव्य होता है। गुरु को पहचानना चाहिए।गुरु की मानना चाहिए तभी जीवन का कल्याण हो सकता है। परमात्मा से हमें यही प्रार्थना करना चाहिए कि जब भी हमसे कोई गलत कार्य हो तो परमात्मा हमें रोक देना, हम किसी भी प्रकार के पुण्य कर्म का संकल्प भी लेते हैं तो इस पुण्य का फल अगले जन्म में श्रेष्ठ पुत्र के रूप में जन्म लेने का मिलता है
इस वर्षावास में सागर समुदाय वर्तिनी सरल स्वभावी दीर्घ संयमी प.पू. शील रेखा श्री जी म.सा. की सुशिष्या प.पू.सौम्य रेखा श्री जी म सा, प.पू. सूचिता श्री जी म सा, प.पू.सत्वरेखा श्री जी म साआदि ठाणा 3 का चातुर्मासिक तपस्या उपवास जप व विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों के साथ प्रारंभ हो गया है।
श्री संघ अध्यक्ष राकेश आंचलिया जैन, सचिव राजेंद्र बंबोरिया ने बताया कि प्रतिदिन 9:15 बजे‌ चातुर्मास में विभिन्न धार्मिक विषयों पर ‌विशेष अमृत प्रवचन श्रृंखला का आयोजन होगा । समस्त समाज जनअधिक से अधिक संख्या में पधार कर धर्म लाभ लेवें ।एवं जिन शासन की शोभा बढ़ावे।

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