NEWS : 230 रुपए के खाने के बिल पर विवाद, ढाबा संचालक से मारपीट , 5 पुलिसकर्मी सस्पेंड

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पुलिसकर्मियों की दबंगई और सत्ता के नशे में चूर रवैये ने एक बार फिर राजस्थान पुलिस की छवि पर सवाल खड़े कर दिए हैं। मात्र 230 रुपए के खाने के बिल को लेकर उपजे विवाद ने उस समय नया मोड़ ले लिया जब पुलिसकर्मियों ने ढाबा मालिक को न केवल गाली-गलौज कर पीटा, बल्कि उसे जबरन थाने भी ले गए। घटना का वीडियो वायरल होने के बाद हरकत में आए भिवाड़ी एसपी ज्येष्ठा मैत्रेयी ने दो एएसआई सहित पांच पुलिसकर्मियों को निलंबित कर जांच के आदेश दे दिए हैं। रविवार रात फूलबाग थाने के नजदीक स्थित ‘दिलखुश ढाबा’ पर एएसआई रामसिंह, कांस्टेबल शांतिलाल और समय सिंह खाना खाने पहुंचे। ढाबा संचालक ने उन्हें 230 रुपए का बिल थमाया, पर जब पुलिसकर्मियों ने अपनी पहचान बताई तो उसने केवल 150 रुपए लिए। पुलिसकर्मियों ने यूपीआई से भुगतान तो कर दिया, लेकिन इसके बाद वे कथित तौर पर नशे की हालत में गाली-गलौज पर उतर आए।
विवाद बढ़ने पर पुलिसकर्मियों ने फूलबाग थाने की गश्ती टीम को मौके पर बुला लिया। मौके पर पहुंचे एएसआई सुरेंद्र सिंह और चालक अमराराम ने भी स्थिति को शांत करने की बजाय ढाबा संचालक को जीप में जबरन बिठा लिया। इस दौरान जब ढाबा मालिक का भांजा प्रदीप शर्मा वीडियो बना रहा था, तो उसका मोबाइल छीना गया और उसे भी गाड़ी में ठूंसकर थाने ले जाकर कथित मारपीट की गई।
वायरल वीडियो ने खोली पोल
घटना का वीडियो सोमवार को सोशल मीडिया पर वायरल होते ही पुलिस महकमे में हड़कंप मच गया। वीडियो में पुलिसकर्मियों की ज्यादती साफ नजर आई, जिसके बाद एसपी ने तत्काल कार्रवाई करते हुए एएसआई रामसिंह, एएसआई सुरेंद्र सिंह, कांस्टेबल शांतिलाल, समय सिंह और चालक अमराराम को सस्पेंड कर दिया। डीएसपी कैलाश चौधरी को मामले की जांच सौंपी गई है।
बिना शिकायत के भी कार्रवाईकृप्रशंसनीय लेकिन अपवाद क्यों?
इस मामले में पीड़ित की ओर से कोई लिखित शिकायत दर्ज नहीं कराई गई थी, फिर भी एसपी ने वायरल वीडियो के आधार पर कार्रवाई की। यह निस्संदेह एक सकारात्मक कदम है, परंतु यह प्रश्न भी उठता है कि क्या हर मामले में वीडियो या सोशल मीडिया का दबाव ही कार्रवाई का आधार बनेगा? जिन मामलों में कोई कैमरा नहीं होता, क्या वहां पुलिसकर्मी मनमानी करते रहेंगे?
सत्ता के दुरुपयोग की एक और कड़ी
राजस्थान में हाल के वर्षों में यह कोई पहला मामला नहीं है जब पुलिसकर्मियों पर नशे में बदसलूकी और मारपीट के आरोप लगे हों। भोजन या मामूली विवाद को लेकर पुलिस द्वारा ‘पावर का मिसयूज’ एक खतरनाक चलन बनता जा रहा है। इस तरह की घटनाएं आमजन का विश्वास न केवल पुलिस से, बल्कि समूचे प्रशासन से हिला देती हैं। जिस पुलिस को आम नागरिक अपनी सुरक्षा के लिए देखता है, वही जब डर का कारण बन जाए तो लोकतंत्र का सबसे मजबूत स्तंभ भी खोखला लगने लगता है। यह घटना सिर्फ पांच पुलिसकर्मियों के सस्पेंशन तक सीमित नहीं रहनी चाहिए, बल्कि यह पूरे पुलिस तंत्र की कार्यशैली पर पुनर्विचार का अवसर है।

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