‘पांव-पांव भैया’ से शुरू हुआ शिवराज का ‘मामा’ बनने का सफर…

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नीमच। (प्रस्तुति सुरेश सन्नाटा)

जनता के दिलों को जीतने वाले और प्रदेश से लेकर देश में अपनी पहचान बनाने वाले शिवराज सिंह चौहान ने ‘पांव-पांव भैया’ से लेकर मामा बनने तक का जो सफर तय किया है उनके सफर की कहानी रुचि तिवारी की जुबानी । 5 मार्च 1959 की तारीख को मध्य प्रदेश के सीहोर जिले के जैत गांव में किसान परिवार के घर शिवराज सिंह चौहान का जन्म हुआ । जिसने करीब 9 साल की उम्र में ही किसानों के हक के लिए आवाज उठा दी। आगे बढ़े तो छात्र राजनीति में आए, विधायक, सांसद और मुख्यमंत्री तक का सफर तय किया और जनता के दिलों को भी बखूबी जीता। ये बात है शिवराज सिंह चौहान की । अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत से लेकर आज तक के हर भाषण में हमेशा खुद को किसान का बेटा कहने वाले वर्तमान केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान 5 मार्च को अपने जीवन के 65 बसंत पार कर जीवन सफर के 66 वे वर्ष में प्रवेश कर गए है। अपने 65 वर्षीय जीवन सफर में उन्होंने ‘पांव-पांव भैय्या’ से ‘मामा’ बनने तक का सफर तय कर प्रदेश व देश भर की जनता का दिल जीत कर कुशल राजनेता का परिचय दिया ।

9 साल की उम्र में पहला आंदोलन

केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने महज 9 साल की उम्र में ही किसानों के हक के लिए आवाज उठानी शुरू कर दी थी। जब वह 7 वीं कक्षा में थे तब उन्होने पहला आंदोलन मजदूरों के पक्ष में किया था । उन्होने आदिवासियों के खिलाफ होने वाले अन्याय के खिलाफ पहली पैदल यात्रा की। 16 साल की उम्र में 1970 में शिवराज सिंह का जुड़ाव ABVP से हुआ. इसके बाद वह छात्रसंघ चुनाव में किस्मत आजमाने उतर पड़े. भोपाल के मॉडल हायर सेकंडरी स्कूल के छात्रसंघ अध्यक्ष बने. उन्होंने बरकतउल्लाह यूनिवर्सिटी, भोपाल से दर्शनशास्त्र में मास्टर्स किया और परीक्षा में सर्वोच्च स्थान मिलने पर गोल्ड मेडल से नवाजे गए। इसके बाद वे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के संपर्क में आए। तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने जब इमरजेंसी लगाई तो वरिष्ठ नेताओं के साथ 1976-77 में 9 महीने के लिए शिवराज जेल गए। मीसा के तहत सबसे नौजवान बंदी रहे। जेल में ही कई नेताओं से संपर्क होने पर उनकी नेतृत्व क्षमता का विकास हुआ. जेल से निकलने के बाद ABVP के संगठन मंत्री बने. 1988 में वह ABVP के मध्य प्रदेश इकाई के अध्यक्ष बने. 1988 में क्रांति मशाल यात्रा के जरिए चर्चा में आए, जो उनकी राजनीतिक यात्रा में सबसे अहम पड़ाव साबित हुआ.

‘पांव-पांव वाले भैय्या’

शिवराज सिंह चौहान ने अपने राजनीतिक सफर में खूब पदयात्राएं की हैं. यही कारण है कि उन्हें जनता ‘पांव-पांव वाले भैया’ के नाम से जानने लगी. तब इस नेता पर नजर पड़ी पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय सुंदरलाल पटवा की । 1990 के दौरान जब विधानसभा का चुनाव हुआ तो शिवराज ने युवा मोर्चा से जुड़े कई युवा नेताओं को टिकट दिलवाई। शिवराज सिंह चौहान विधानसभा का चुनाव लड़ेंगे यह तो तय था, लेकिन यह तय नहीं था कि वह बुधनी से लड़ेंगे। लेकिन ये संकट विदिशा से सांसद बने राघवजी ने साफ कर दिया था। उन्हें दिल्ली का सफर तय करना था. वह इलाके में अपने लोग बैठाना चाहते थे. उनकी सलाह थी कि शिवराज को बुधनी से चुनाव लड़ाया जाए. यह फंसी हुई सीट थी लेकिन शिवराज लड़े और जीते भी ।

लोगों से पैसे मांगकर लड़ा चुनाव

1990 में 31 साल की उम्र में ही शिवराज सिंह चौहान बुधनी सीट से पहली बार विधायक बने. पहले ही चुनाव में निकटतम कांग्रेस उम्मीदवार को 22 हजार वोटों से हराया. तब शिवराज ने लोगों से पैसे मांगकर चुनाव लड़ा था. साथ ही ‘वन वोट, वन नोट’ का नारा भी दिया था. हालांकि, वह एक साल ही विधायक रहे क्योंकि 1991 में जब अटल बिहारी वाजपेयी ने विदिशा लोकसभा सीट से इस्तीफा दिया तो पार्टी ने शिवराज सिंह चौहान को इस सीट से चुनावी मैदान में उतार दिया. शिवराज पहला लोकसभा चुनाव भी जीतने में सफल रहे और सबसे कम उम्र के सांसद बने.

1992 में शिवराज भारतीय जनता युवा मोर्चा के के जनरल सेक्रेटरी बने.
1996 में वह दोबारा विदिशा लोकसभा सीट से जीते
1998 और 1999 में भी लगातार लोकसभा चुनाव जीते.
2000 से 2003 के बीच भारतीय जनता युवा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे.
2004 में लगातार पांचवी बार लोकसभा चुनाव जीते.
2005 में बीजेपी के मध्य प्रदेश BJP के अध्यक्ष बने.
29 नवंबर 2005 को वह मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बने.
2007 में दूसरी बार मध्य प्रदेश के CM बने.
2013 में तीसरी बार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बने.
2020 में एक बार फिर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बने.
1991, 1996, 1998, 1999 और 2004 में विदिशा से लोकसभा सांसद भी रहे.

बन गए सबके मामा

शिवराज सिंह चौहान के अनुसार जब मुख्यमंत्री बनकर उन्होंने बेटियों के लिए लाडली लक्ष्मी योजना, मुख्यमंत्री कन्यादान योजना और स्थानीय निकायों में 50 प्रतिशत आरक्षण बहनों और बेटियों को देने का काम किया, तो बेटियों ने उन्हें ‘मामा’ कहना शुरू किया और बाद में बेटे भी ‘मामा’ कहने लगे. इस तरह उनका नाम मामा पड़ गया। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहते हुए शिवराज सिंह चौहान ने प्रदेश की जनता के लिए कई योजनाएं शुरू की. इनमें मुख्य तौर पर लाडली लक्ष्मी योजना, मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना, स्कूली छात्राओं के लिए मुफ्त साइकल, किताब और छात्रवृत्ति योजना, रुक जाना नहीं जैसी योजनाएं शामिल हैं. इसके अलावा साल 2023 विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने महिलाओं के लिए मुख्यमंत्री लाडली बहना योजना की भी शुरुआत की।

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