MP NEWS : लो आ गया भगोरिया : भीगे रहेंगे आदिवासी अंचल,….

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जाते हुई वसंत ऋतु की खुशनुमा बयार, खिलते फूल, हवा में इठलाते ताजा-ताजा पत्ते और मतवाला माहौल काफी होता है आदिवासी समाज के भगोरिया पर्व में चार चांद लगाने के लिए। होली के त्योहार के सात दिन पहले मनाए जाने वाले पर्व का समाज को बेसब्री से इंतजार है। रोज-रोटी की तलाश में अपने गांव-फालियों से पलायन करने वाले परिवार लौट आते इस पर्व के बहाने अपनी मिट्टी की सौंदी महक और लोक संस्कृति की चमक दमक के लिए। आदिवासी अंचल में यह मेला 7 मार्च से लगना शुरू हो जाएगा। जगह-जगह भगोरिया हाट की तैयारियां हो चुकी है।

समय के साथ आदिवासी संस्कृति के साथ आधुनिकता की झलक भी इस त्यौहार में शामिल हो चुकी है। सन ग्लासेस, ईयर फोन, सेल्फी भी मेलों में दिखाई देती है, लेकिन पारंपरिक गीत, पकवान और आदिवासी संस्कृति ने आज भी पुरानी परंपरा की खुशबू को ताजा कर रखा है। भगोरिया मेल में आदिवासी अपने अंदाज में अपनी जिंदगी जीते है और फिर सालभर उनकी यादों का संजो कर रखते है। भगोरिया मध्य प्रदेश के झाबुआ, अलीराजपुर, धार, बड़वानी, खरगोन व जिलों में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।

राजा भोज के समय से शुरूआत भगोरिया की शुरुआत राजा भोज के समय से हुई। उस समय दो भील राजा कासूमार औऱ बालून ने अपनी राजधानी भगोर में मेले का आयोजन करना शुरू किया थी। जब इसकी ख्याती बढ़ने लगी तो फिर धीरे-धीरे आसपास के भील राजाओं ने भी मेले को अपने-अपने इलाकों में लगाना शुरू कर दिया और इसने एक परंपरा का रुप ले लिया।

यह भी कहा जाता है कि होली के पहले लगने वाले हाट में आदिवासी समाज जमकर रंग-अबीर खेलते है, गुलाल उड़ाते है। इसलिए इसे गुलालिया हाट कर जाता था, लेकिन बाद में व भगोरिया हाट कहलाने लगा। यह भी कहा जाता है कि इस हाट में आदिवासी युवक-युवतियां सज-संवर कर आते है और हाट में रिश्ते भी तय होते है।

भगोरिया को राजकीय उत्सव का दर्जा
मप्र सरकार ने भगोरिया को राजकीय उत्सव का दर्जा देने की घोषणा की है। मुख्यमंत्री मोहन यादव ने कहा कि जनजातीय समाज के जितने भी त्यौहार है, प्रदेश सरकार उसे राजकीय स्तर पर मनाएगी।

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