धार। (अनिता मुकाती)
जिले के जनजाति कार्य विभाग में 181 पर मिलने वाली शिकायतों का दबाव लगातार बढ़ता जा रहा था। शिकायतों के समय पर निराकरण न होने से विभागीय कार्यप्रणाली पर सवाल उठने लगे थे। इसी स्थिति को देखते हुए सहायक आयुक्त ने एक कड़ा और निर्णायक कदम उठाते हुए विभाग के सभी कर्मचारियों, यहां तक कि स्वयं अपने भी पिछले माह के वेतन भुगतान पर रोक लगा दी है। उन्होंने स्पष्ट कहा है कि जब तक 181 की लंबित शिकायतों का समुचित और संतोषजनक निराकरण नहीं होता, तब तक किसी भी कर्मचारी को वेतन जारी नहीं किया जाएगा।
इस निर्णय के बाद विभाग में हड़कंप मच गया, लेकिन इसका प्रभाव तुरंत देखने को मिला। पहले जहां 181 की शिकायतें बिना समाधान के लंबित रह जाती थीं, वहीं अब कर्मचारी तेजी से सभी शिकायतों का निपटारा करने में जुट गए हैं। कर्मचारियों की टीमों को निर्देश दिए गए हैं कि वे प्रत्येक शिकायत का फील्ड और डॉक्यूमेंट स्तर पर सत्यापित समाधान प्रस्तुत करें। हालांकि यह कदम विभाग में सकारात्मक बदलाव ला रहा है, लेकिन इससे कर्मचारी वर्ग में निराशा भी देखी जा रही है। वेतन न मिलने से कई कर्मचारियों पर आर्थिक संकट गहरा गया है। कई कर्मचारियों ने माना कि शिकायतों का निराकरण करना जरूरी है, परंतु सामूहिक वेतन रोकने से उन्हें व्यक्तिगत स्तर पर समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। परंतु सहायक आयुक्त का साफ कहना है कि 181 पर लंबित शिकायतें विभाग की छवि खराब करती हैं और बार-बार मिल रही जन शिकायतें यह दर्शाती हैं कि फील्ड और कार्यालय स्तर पर लापरवाही बरती जा रही थी। यदि पहले से शिकायतों को गंभीरता से लिया जाता, तो ऐसी नौबत ही नहीं आती।
इस पूरी प्रक्रिया ने एक और बड़ा मुद्दा उजागर किया है। अधिकारियों का कहना है कि 181 पर की गई कई शिकायतें फर्जी या तथ्यहीन होती हैं, जिनका उद्देश्य केवल प्रशासन को भ्रमित करना होता है। एक शिकायत का समाधान होते ही कुछ उपभोक्ता चार नई शिकायतें दर्ज करा देते हैं, जिससे विभाग पर अतिरिक्त बोझ बढ़ता है।
अब विभागीय स्तर पर यह भी मांग उठ रही है कि शासन 181 शिकायत प्रणाली के लिए नए नियम बनाए, ताकि गलत या दुरुपयोग वाली शिकायतों पर रोक लग सके और वास्तविक मामलों का त्वरित समाधान हो

