मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी चयन के बाद जिन स्थितियों का सामना भाजपा व कांग्रेस कर रही है वह दोनों ही दलों के लिए चिंताजनक होकर उनकी नींद उड़ा रही है। क्योंकि विरोध के मुखर हो रहे स्वरों को अगर नहीं दबाया गया तो ऊंट किस करवट बैठ जाए कहना कठिन है। जिस तरह डैमेज कंट्रोल में लगी भाजपा व कांग्रेस उनकी मान मनुहार हो या सरकार बनने के दी जाने वाली किसी रेवड़ी के प्रलोभन से भी गुरेज नहीं कर रही है। मगर उसके बावजूद उनकी त्योरियां चढ़ी हुई दिखाई दे रही है। ऐसे में बागी वन चुनाव लड़ने की तैयारियां भी सामने आ रही है जो सीधा-सीधा हमला है। परंतु इसके अलावा इन बागियों से ज्यादा भाजपा व कांग्रेस को नुकसान भीतर घात से होना है जो होता रहा है। क्योंकि ऐसे नेता जो अपनी निष्ठा भले ही पार्टी के प्रति दिखाएंगे मगर असल में वह अपनी पार्टी के उम्मीदवार की बजाय विरोधी उम्मीदवार के भंडार भरने में सहायक बन भीतर घात के दंश से दल को आहत करने में नहीं चूकेंगे। नीमच जिले के तीनों विधानसभा क्षेत्र में नाराज नेताओं , कार्यकर्ताओं के विरोध की लपटें दोनों ही दलों के प्रत्याशियों के लिए शूल भरा रास्ता बनाने में लगी है। जिससे गुजर कर उन्हें अपनी मंजिल पाने की बड़ी दुविधा से दो – दो हाथ करना है। याने कहने का आशय यह है कि इस बीजेपी का गढ़ माने जाने वाले संसदीय क्षेत्र में भाजपा अपनी पकड़ कायम रख सकेगी या उसे भीतर घात से आहत होकर नुकसानी से रूबरू होना पड़ेगा। इसी तरह वर्षों से छटपटा रही कांग्रेस एकजुटता का परिचय देकर भीतर घातियों के दंश से पार पा सकेगी यह सबसे बड़े सवाल बनकर बाजार की चर्चाओं में प्रमुख रूप से तैर रहे हैं।
–सुरेश सन्नाटा