राजस्थान की शौर्य धारा के ब्यावर में जन्मे कवि श्याम अंगारा जिनकी काव्य मंचों पर उपस्थित मंच को गोरवान्वित कर श्रोताओं को देशप्रेम का रसास्वादन करवा उनमें देशभक्ति का जज्बा पैदा कर देती थी । वे जैन संतो के प्रिय कवि थे उन्होंने जैन समाज को लेकर जो सृजन किया वह निसंदेह स्तुत्य होकर जैन मंचों की शान रहा है। अपने उत्कृष्ट लेखन व प्रस्तुति से देश भर में काव्य मंचों पर अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने वाले श्याम अंगारा कुछ समय से अस्वस्थ थे। वे विगत दिनों इस संसार को अलविदा कर चीर निद्रा में सो गए। उनके निधन पर नीमच के साहित्यकार बंधुओं व प्रेमी श्रोताओं ने उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित किए हैं उनकी कलम कविता में ‘कंकर कंकर को शंकर कर’ देने की सार्थक भूमिका निभाकर अपना प्रभाव छोड़ने में समर्थ थी। श्याम अंगारा ने काव्य मंचों की यात्रा के 40 साल समर्पित कर वे देश के चुनिंदा कवियों में अपना नाम दर्ज करवाने में कामयाब हुए। वे पूर्णकालिक रचना धर्मी थे जो सरस्वती पुत्र के रूप में कलम से लक्ष्मी को अर्जित कर स्वाभिमान के साथ अपना जीवन यापन करने के लिये जाने जायेंगे। श्याम अंगारा ने देशभर में हजारों कवि सम्मेलन व गोष्ठियों में रचनापाठ किया और ब्यावर जैसे छोटे से कस्बे की साहित्यिक क्षेत्र में पहचान को समृद्धि दी। उनकी उपलब्धि यही है कि देश के नामी कवियों के साथ उन्होंने मंच साझा किया जिसमें गोपालदास नीरज, बाल कवि बैरागी, हरिओम पंवार, कुमार विश्वास, सुरेन्द्र शर्मा, संतोषानन्द, ओम व्यास, राहत इन्दौरी, जगदीश सोलंकी, वेदव्रत वाजपेयी, सुरेन्द्र दुबे, पं. विश्वेश्वर शर्मा, अशोक चक्रधर, सत्यनारायण सत्तन, बंकट बिहारी पागल सहित अनेक दिग्गज हैं जिनके साथ उन्होंने रचनापाठ किया। यह अलग बात है कि इतने धुरंधरों के बीच रहकर भी वे उस श्रेणी में अपना नाम दर्ज नहीं करा सके जिसे व्यावसायिक पैमाने पर आंका जाता है। उन्होंने सादगी, ईमानदारी व सपाट बयानी के साथ जीवन जिया और यूं कहें कि सफलता की ऊंचाइयां छूने के लिये किसी भी तरह की साहित्यिक मक्कारी से खुद को बचाये रखा। इसी का परिणाम है कि वे आर्थिक दृष्टि से जहां थे वहीं रह गये और साहित्यिक जगत में भी मंचीय अभिनय की अदाकारी से खुदको दूर रखकर आदर्श व नैतिक मूल्यों को कायम रखा। उनकी लेखनी इस रूप में भी सत्य कही जायेगी कि उन्होंने राष्ट्रीय आदर्श को अपनी कथनी और करनी में समान रूप से महत्व दिया। उनकी कई प्रतिनिधि कविताएं उनके दृढ़ चरित्र की परिचायक रही है जिसमें ‘भगतसिंह की माँ’ नामक एक कविता भी इसी श्रेणी में है। इन्दिरा गांधी व नरेन्द्र मोदी पर भी रचनाएं लिखी और समकालीन स्थितियों की सटीक अनुभूति को कागज पर उतारा। वे रामकथा के हिन्दी अनुवाद के जरिये पारिवारिक सौहार्द की मिठास को भी जन रूचि के विषय के रूप में परोसने में सुख की अनुभूति करते रहे। बालाजी पर महाकाव्य लिखकर भी उन्होंने हनुमान चरित्र की विषद विवेचना कर अनूठी प्रतिभा को जताया। अनेक जैन साधुओं व आचार्यों के सम्पर्क में आने से महीनों उनके साथ प्रवास पर रहते और काफी जैन साहित्य लिखकर भी उन्होंने आजीविका चलाई। उनकी कई रचनाएं सीडी के माध्यम से भी लोगों तक पहुंची। अब वे हमेशा के लिये कलम को कागज के बिस्तर पर खुला छोड़कर इस नश्वर संसार से रुखसत कर गए। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे।