भक्तों के दिलों पर राज करने वाले पंडित मिश्रा की निरस्त हुई कथा से हजारों श्रोताओं का टूटा दिल

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मनासा। (सुभाष व्यास की रिपोर्ट) । आज 1 अप्रेल से मनासा में शुरू हुई शिवमहापुराण कथा का आयोजन पंडित प्रदीप मिश्रा द्वारा कथा शुरू करते ही अचानक अपने स्वास्थ्य का हवाला देकर निरस्त किया जाना खासी चर्चा का विषय बन गया है और लोगों का गुस्सा धीरे-धीरे सामने आ रहा है। क्योंकि कथा शुरू करने की बजाय अन्तर्राष्ट्रीय पंडित प्रदीप जी मिश्रा का स्वयं आकर कथा स्थल पर अपने खराब स्वास्थ्य होने का हवाला देकर कथा न होने की बात कहना उपस्थित हजारों लोगों के मन में सैकड़ों सवाल खड़े कर गया है। इन चर्चाओं की घर माने तो गुरु जी को जब होली के दिन सिर में नारियल से चोट आई थी तो यह पूर्व निर्धारित कथा पहले भी या दो दिन पूर्व भी निरस्त कर हजारों भक्तों को प्रशासन को व अन्य व्यवसायियों को कथा निरस्त होते ही हुई परेशानी बचा सकती थी। सोशल मीडिया का ज़माना होने से यह खबर सबके पास आसानी से पहुंच सकती थी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ और जब गुरु जी ने मंच पर आकर अचानक कथा न होने की बात कही तो पांडाल में बैठे हजारों लोग व प्रशासन हक्का-बक्का रह गया।जिस कथा को सुनने हजारों की तादात में भक्त अनेकों राज्यों एवं जिलों से आए थे। यही नहीं जिस कथा को लेकर पिछले कई दिनों से असमंजस की स्थिति बनी होकर शासन – प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारियों ने आयोजन स्थल का अनेकों बार निरीक्षण कर समुचित व्यवस्थाओं के अभाव की स्थिति में प्रशासन अनुमति देने से कतरा रहा था। परंतु सामाजिक एवं राजनैतिक संगठनों की कथा के प्रति रुचि व लोगों की धार्मिक आस्था को देखते हुए प्रशासन को को भी आचार संहिता लागू होने व व्यवस्था की कमियों के बावजूद सशर्त प्रशासन को अनुमति देना पड़ी। अनुमति के साथ ही प्रशासन पूरी मुस्तैदी के साथ आयोजन में चाक चौबंद व्यवस्था बनाए रखने के लिए खड़ा दिखाई दिया। लेकिन जब कथा शुरू होते ही उस पर समापन का पाला पड़ गया तो पंडाल में उपस्थित हजारों श्रोता निराश होकर धक रह गए। कथा निरस्ती को लेकर अगर सूत्रों की माने तो कथा आयोजन की आड़ में चाहे वह बैठने के नाम पर हो या वीआईपी पास को लेकर लेनदेन की बात हो, कलश यात्रा में रसीद के नाम पर लेन-देन का मामला हो अथवा वाहन पार्किंग को लेकर या दुकानें आवंटन के नाम पर लेन-देन की बात भी चर्चाएं बता रही है। जिसकी भनक शायद प्रदीप मिश्रा को लग गई थी। जिसे उन्होंने अनुचित समझते हुए इस कथा के आयोजन को निरस्ती  का जामा पहना दिया हो ? इससे भी नहीं नकारा जा सकता। खैर । कथा को लेकर जनता के मन में संशय और गंभीर सवाल तैर रहे हैं । पंडित प्रदीप जी मिश्रा ने अपने हजारों भक्तों को निराश क्यों किया यह तो वही जाने मगर दूर दराज से आए हजारों भक्तों के मन पर आज मानो किसी ने भारी भरकम पत्थर रख दिए हों यह स्थिति दिखाई दे रही है।

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