मनासा । (सुभाष व्यास/मुकेश शर्मा)
जीवन में सिद्धि प्राप्त करने के लिए पवित्रता आवश्यक है,। अल सुबह शुद्ध जल से अपने मुह को धोना हमारी संस्कृति और संस्कार है।
उक्त उदगार भानपुरा पिठाधीश्वर स्वामी ज्ञानानंद जी तीर्थ ने अपेल्सा रिसोर्ट मनासा मे सुन्दर लक्ष्मी ट्रस्ट राठौर परिवार के सौजन्य से चल रही सात दिवसीय भागवत कथा के तीसरे दिन भक्तो को भागवत सुधा रस पिलाते हुए कहे उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति मे शव को भी स्नान कराया जाता है। जीवन चक्र चलाने के लिए शास्त्रों का आवश्यक है । संतो का सानिध्य और कथा श्रवण करना ज्ञान प्राप्ति का परिचायक है। गलत संगत और मिथ्या ज्ञान पथ भ्रष्ट करता है। जबकि आस्था और श्रद्धा से जुड़ा ज्ञान हमारा मार्ग प्रशस्त करता है।क्योंकि श्रद्धा धर्म की पुत्री है जबकि मिथ्या अधर्म की पत्नी है और कपट मिथ्या का भाई है। इसलिए जहाँ अधर्म होगा तो वहां उसका भाई और उसकी पत्नी भी होंगे । ज्ञानानंद जी ने कहा कि व्यक्ति को दिखावे और प्रदर्शन से बचना चाहिए। क्योंकि इर्षा व अधर्म रूपी काई दर्पण में लगी है। इसलिए अपना जीवन दर्पण साफ करो। दर्शन की हमारी भारतीय संस्कृति मे दर्पण का प्रतीक महत्त्वपूर्ण है।मन से मनन करो,चित्त से चिंतन करो और काया से सेवा करो। क्योंकि यदि चिंतन नही होगा तो फिर चिंता होगी ।चिंतन की राह पर चलना ही आध्यात्म है। भागवत कथा मे बडी संख्या में महिलाओं, पुरूषों ने भागवत कथा का श्रवण किया
NEEMUCH NEWS : मन से मनन , चित्त से चिंतन और काया से सेवा ही धर्म है – स्वामी ज्ञानानंद तीर्थ
