नीमच : (सुरेश सन्नाटा) आवारा कुत्तों के आतंक का कहर शहरवासियों के लिये ऐसा अभिशाप बन गया है जो आए दिन बच्चे, जवान हो या बुजुर्ग उनको आहत करता रहता है। जिसे लेकर नागरिकों व समाचारों के माध्यम से जवाबदार नपा प्रशासन को अवगत भी करवाया जाता है। मगर इस शहर की विडम्बना ही है कि सम्बन्धित प्रशासन इनसे निजात दिलाने के लिये दावे जरूर करता है मगर नतीजा ढाक के तीन पात ही सामने आता रहा है।
कुत्तों के आतंक से शहर को मुक्त कराने की दिशा में नगरपालिका द्वारा कुत्तों की नसबंदी करने की बात हो या फिर उन्हें पकड़ने की इन दावों की किस तरह हवा निकल रही है कहने की जरूरत नहीं है। शहर की गली, कालोनी से लेकर मुख्य मार्गो पर तैनात ये कुत्ते उस वक्त और ज्यादा घातक होकर दुर्घटना का कारण बन जाते हैं जब कोई दो पहिया वाहन चालक सड़क से गुजरता है तो घात लगाकर बैठे ये कुत्ते उस पर लपकते है ऐसे में अपने बचाव में कई बार वाहन चालक नियंत्रण खो देता है और दुर्घटना का शिकार भी हो जाता है। यही.. नहीं जगह – जगह मंडराते कुत्तों के झुंड बच्चों, बड़ों, महिलाओं पर भी हमला बोलकर उन्हें अपना शिकार बनाने में नही चुकते। याने इस तरह शहर की वादियों में पसरा कुत्तों का आतंक जनजीवन, के लिये ऐसा अभिशाप बन गया है जो नागरिकों को भयभीत करता रहता है। कहने का आशय यह है कि नपा अमला डाल-डाल, पात-पात वाली कहावत चरितार्थ कर नागरिकों के जख्मों पर नमक लगाने की बजाय शहरवासियों को कुत्तों के आतंक से मुक्ति दिलाने की दिशा में कारगर कदम उठाने की जबाबदारी निभाए। क्योंकि नगर पालिका की अभी तक की कार्यवाही महज ऐसी औपचारिकता ही नजर आती रही है जिसने चार दिन की चाँदनी फिर वही अंधेरी रात वाली कहावत का ही नजारा दिखाया है