चुनावी जंग और चुनौती …….जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव के मतदान की तिथि नजदीक आ रही है वैसे-वैसे भाजपा व कांग्रेस दोनों ही दलों के उम्मीदवार हो या स्टार प्रचारक उनकी जनसंपर्क, जनसभा की भागम भाग दिन रात नहीं देखते हुए मतदाताओं के मानस को अपना बनाने के हर संभव प्रयास में लगी है। क्योंकि उम्मीदवारों के समक्ष मुंह बाए खड़ी मतदाताओं की नाराजगी, बागियों की चुनौती ने उन्हें ऐसे संकट में डाल रखा है कि वे अपनी जीत को लेकर भी संशय में है। कुछ स्थानों को छोड़ दें तो अधिकांश विधानसभा क्षेत्र की चुनावी जंग कड़े मुकाबले की ओर इशारा कर हार – जीत का पूरे विश्वास से खुलासा करने की स्थिति में नजर नहीं आ रही है। क्योंकि राजनीतिक जानकार, मीडिया, सट्टा बाजार का आंकलन भी कड़े मुकाबले का ही खुलासा कर रहा है। पिछले 18 वर्षों से प्रदेश की सत्ता में काबिज भाजपा भी अब इस चुनावी जंग को जीतना आसान नहीं समझ रही है। यही वजह है कि देश के प्रधानमंत्री को विधानसभा उम्मीदवारों के पक्ष में अपनी दहाड़ सुनाने व उन्हें साधने के लिए मध्य प्रदेश की धरती पर बार-बार आना पड़ रहा है। यह स्थिति उम्मीदवार चयन और उनकी घोषणा के बाद दोनों ही दलों के समक्ष इस कदर बगावत का संदेश लेकर आई है कि बागी उम्मीदवारों ने दोनों ही दलों के समर्थित उम्मीदवारों की जीत को संशय के घेरे में लाकर खड़ा कर दिया है। बगावत से जो त्रिकोणी संघर्ष के हालात दिखाई दे रहे हैं वे दोनों ही दलों की सेहत के लिए ठीक नहीं कहे जा सकते। इसके अलावा जाति धर्म को लेकर जिस तरह एक दूसरे पर टिप्पणियां की जा रही है वह ऐसा नासूर बनती दिखाई दे रही है जो दोनों ही दलों के लिए किसी भी रूप में फायदेमंद नहीं कहीं जा सकती है। वैसे तो अघोषित रूप से भाजपा शिवराज को ही आगे रखकर चुनाव लड़ रही है। मगर चेहरा मोदी का सामने है । यानी शिवराज को दूसरी पंक्ति में छुपाया जा रहा है। जबकि कांग्रेस के दीनदयाल कमलनाथ का चेहरा किसी से छुपा नहीं है। किसानों को बहलाने के लिए राजनीतिक दल कुर्सी की चाहत में साम, दाम, दंड, भेद तक के ब्रह्मास्त्र का उपयोग करने में भी नहीं चूक रहे हैं। वह ऐसे में अन्नदाता कहलाने वाले किसान का तो भगवान ही मालिक है। याने यह कहना भी गलत नहीं होगा कि सरकारें जनता को सुविधा संपन्न नहीं बनाती। मगर सवाल यह है कि चुनाव के दौरान उसे आसमान की उड़ान का सपना दिखाकर बड़ी चतुराई के साथ ठग लिया जाता है और वह 5 साल तक हाथ मलती रह जाती है। इस विधानसभा चुनाव को जीतकर अपनी सरकार बनाने की कांग्रेस व बीजेपी की कवायद रात दिन शहर की सड़कों से लेकर गांव की पगडंडी नाप रही है। यह बात अलग है कि कमलनाथ दो-तीन सभा के बाद ही पवेलियन में लौटते नजर आ रहे हैं। परंतु शिवराज की ऊर्जा 8 – 10 सभाओं का दम खम – दिखा रही है। भाजपा के तमाम बड़े चेहरे चुनाव को हाईक कर चुनावी मोर्चा संभाले हुए हैं। इनमें प्रधानमंत्री मोदी व गृहमंत्री शाह भी शामिल है। अगर देखा जाए तो प्रधानमंत्री मोदी प्रदेश की चुनावी जंग में प्रमुख सेहरा बन दहाड़ते नजर आ रहे हैं। वैसे कांग्रेस के लिए पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और प्रियंका गांधी भाजपा की डबल इंजन सरकार पर पूर्ण रुपेण हावी होकर अपनी जीत का रास्ता तलाश रही है। विशेष बात यह भी सामने आ रही है कि जानकार, गणितज्ञ व मीडिया भी निष्पक्षता के बजाय अपने समीकरण के मान से किसी से बुरा नहीं बनने की विचारधारा के साथ ऐसा आईना दिखा रहा है जो मीडिया कि आगामी को बाधित नहीं कर सके। ऐसे में अगर बात की जाए तो जो उम्मीदवार या दल मतदाता को घर से निकाल कर बूथ तक पहुंचने में बाजी मार लेगा उसकी बल्ले – बल्ले जरूर हो जाएगी।—सुरेश राजपुरोहित सन्नाटा

