मंथन से निकलेगा अमृत या…….

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नीमच |
मंथन करना निहायत जरूरी है ताकि मंथन से अमृत भी निकले और सबके लिये कल्याण कारी हो। मगर यह सतयुग या द्वापर नही बल्कि कलयुग है। इसलिये अमृत की कल्पना करना ही व्यर्थ है। क्योंकि जिस मंथन की माथापच्ची में भाजपा और कांग्रेस के आला दिग्गज  लगे हुए हैं। वह ऐसा संकट है जो भाजपा व कांग्रेस के लिये खासा सिरदर्द बनकर टिकीट चाहने वालों की लम्बी कतार को देख स्वयं को मंथन से अमृत खोजने में उलझा रहा है। दोनों ही राष्ट्रीय दलों द्वारा जीताऊ उम्मीदवार पर मुहर लगाना ऐसी विडम्बना है जो जीताऊ आंकलन के कारण उम्मीदवार की नेक नीयत, जनसेवी छवि, सदाचरण आदि विशेषताओं को नजरंदाज कर उसके तमाम  दुर्गुणों पर परदा डाल उसकी जीताऊ योग्यता की पक्षधर बन अपने उन तमाम कर्मठ, इमानदार, छवि वाले नेताओं को आहत करने में कतई परहेज नही कर रही है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या जिस विकास और राष्ट्र उत्थान की कल्पना फो साकार करने का सपना दिखाया जा रहा है। वह हकीकत में देश को गाय रूपी मतदाता को खुशहाल बनाने का दायित्व निभा पाएगा। नीमच जिले की दो विधानसभा सीटों की उम्मीदवारी के लिये भाजपा का शीर्ष नेतृत्व उम्मीदवार चयन के मंथन व कांग्रेस भी दो विधानसभा उम्मीदवारों के चयन में इस कदर उलझा है कि उसे एक तरफ खाई तो दूसरी और कुआ नजर आ रहा है। इसके अलावा स्थानीय स्तर से लेकर प्रदेश स्तर तक उम्मीदवारी की चाहत रखने वाले नेताओं का मीडिया प्रबंधन इस तरह समाचार जारी करवाने में महारथ हासिल कर चुका है कि वह उम्मीदवारी की हसरत रखने वाले ऐसे नेता का नाम भी चयन लिस्ट में प्रथम पायदान पर बताने से भी गुरेज नहीं कर रहा है। वैसे तो नीमच से कांग्रेस की चयन सूची में पहले पायदान पर दो नामों में से एक नाम उमराव सिंह गुर्जर  का है। तथा दूसरा नाम अगर इस संसदीय क्षेत्र से आलाकमान किसी महिला को उम्मीदवार बनाता है तो मधु बंसल का है। इसलिये तेल देखो, तेल की धार देखो कहावत का ध्यान रख अगली सूची का इंतजार ही तमाम चर्चाएं हों या फिर फेक न्यूज का कमाल उन्हें सीरे से नकार उम्मीदवारों के नाम सामने ला देगा। जहां तक घोषित भाजपा व कांग्रेस के उम्मीदवारों की सूची के बाद उम्मीदवारों के उभर रहे विरोधी स्वरों  की बात है तो यह उनका अधिकार है। मगर जब पार्टी के अनुशासन का डंडा हावी होता है। तो इन्हें मौन साधना पड़ता है। यह बात अलग है की कुछ उम्मीदवारी की हसरत रखने वाले नाराज नेता बगावत का बिगुल बजाकर अधिकृत उम्मीदवार की हार का कारण भी बन जाते हैं

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