व्यवहार व निश्चय से होता है धर्म का पालन – दर्शन रत्ना श्री जी

Spread the love
झाबुआ। (रिंकू रुनवाल)
आचार्य जयानन्द सूरिश्वरजी म.सा. की आज्ञानुवर्ती साध्वी दर्शनरत्नाश्रीजी म.सा. ने स्थानीय राजेन्द्र जैन पौषध भवन में प्रवचन के दौरान कहा कि मोहनीय कर्म के अधीन होकर हम पूजा करते हैं। जो उचित नहीं है। ब्रह्मचर्य साधु भगवत का प्राण है। मूर्च्छा परिग्रह है।  वित राग देव कहते है कि हमें राग से दूर रहना है। व्यवहार एवं निश्चय से धर्म चलता है। भगवान् जन्म से ही अतिशय के धारी होते हैं। मोहनीय कर्म के क्षय हेतु हमें आगमोक्त बातों का अनुसरण करना होगा।. मिथ्यात्व को छोड़कर हमें देव, गुरु एवं धर्म का पालन करना है।
अनन्त काल से हमारे उपर मोह का साम्राज्य है जिससे हम पुद्‌गलों से स्नेह करते हैं। प्रभु से हमे वास्तविक प्रेम नही हुआ है। हम सभी यथाशक्ति धर्म करते हैं।  सम्यक दर्शन के बिना ‘हमें मोक्षमार्ग प्राप्त नही होगा। प्रभु आज्ञा को जानना ही होगा।  जिनशासन में कर्म सत्ता का महत्व प्रतिपादित किया गया है। मोक्ष हमारा  लक्ष्य है।  साध्वी भगवंत ने चातुर्मास  हेतु  मोहनखेड़ा तीर्थ के लिए विहार किया । धर्म सभा में सभावक धर्मचन्द्र मेहता, वरिष्ठ भावक अशोक कटारिया, श्री संघ अध्यक्ष संजय मेहता, अंतिम जैन, राजेन्द्र कटारिया, इन्दर संघवी, रमेश छाजेड़, राजेश मेहता अनील अंकित कटारिया, रचित कटारिया, रिकू रूनवाल आदि उपस्थित थे ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *